वास्तु एवं ज्योतिष >> मंत्र शक्ति और साधना मंत्र शक्ति और साधनाभोजराज द्विवेदी
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
मंत्र और साधना में ऐसी आध्याकत्मिक शक्ति सम्मिलित होती है जो एक बार भगवान (ईश्वयर) को भी इंसान के सन्मु ख लाकर खड़ा कर दे। मंत्र शब्द का अर्थ होता है किसी भी देवता को संबोधित किया गया प्रार्थना पूरक वेद। मंत्र के भीतर ऐसी गूढ़ शक्ति छिपी है जो वाणी से प्रकाशित नहीं की जा सकती बल्कि शक्ति से वाणी स्वययं प्रकाशित होती है। मंत्रों से जीव की चेतना जीवंत, ज्वीलंत और जाग्रत हो उठती है। साधना इंसान की लीनता का भाव है। जितने दिन इंसान साधना में लीन होता है, उतने ही दिन इंसान को साधना के नियमों का पालन करना होता है। यह नियम प्रकृति द्वारा ही बनाए गए हैं।
किसी भी प्रकार की मंत्र, साधना प्रारंभ करने के लिए गुरु की आवश्य कता होती है। मनुष्यप को अपने जीवन में एक ही गुरु से संपूर्ण ज्ञान प्राप्तन नहीं होता। मंत्र साधना में गुरु का क्याह स्थायन एवं महत्व है, इसकी व्या पक जानकारी इस पुस्तपक में दी गई है।
किसी भी प्रकार की मंत्र, साधना प्रारंभ करने के लिए गुरु की आवश्य कता होती है। मनुष्यप को अपने जीवन में एक ही गुरु से संपूर्ण ज्ञान प्राप्तन नहीं होता। मंत्र साधना में गुरु का क्याह स्थायन एवं महत्व है, इसकी व्या पक जानकारी इस पुस्तपक में दी गई है।
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